नाराज़ क्यों हैं ये हवाएं मुझसे
जो खिड़की पे आती नहीं
कोई खता हुई तो बता दो ना
माफ़ी माँग लूँगा मैं
मेरे जीने का बहाना तू
मेरे सांसें एहसान हैं तेरी
आखिर हूँ तो एक मानव ही
गलतियां हुई हैं मुझसे
आज भी, पहले भी
वादा नहीं कर रहा हूँ आगे नहीं होंगी
वादा तो बस इतना तुझे खोने से पहले
माफ़ी माँग लूँगा मैं
आदत नहीं बन रही
तेरे बिना सांसें लेने की
ये मास्क लगा के कब तक घूमूँ मै
चुभती हैं ये मशीन की हवाएं
मुझे इश्क़ जो तेरी गुनगुनी बातों से है
एक झलक सामने तो आ
माफ़ी माँग लूँगा मैं
मकसद तो मेरा यही था सदा
तू निविरल बह , छल छल
आसमान की बुलंदियों से अठखेलियां कर
खलखलाती नदियों से आँख लड़ा
महक तू सदा खिलते गुलाब सा
इरादे भांप ना तू मेरे
एक बार और
मौका तो दे एक और छोटी मुलाक़ात का
माफ़ी माँग लूँगा मैं