मत बैठ अब शांत
मंदिर, मस्जिद, चर्च की शक्ल में
अब तेरा कल नहीं
उड़ा अपनी पतंग
धागा भी अब खुद का रख
बहुत सुन ली जग की तूने
अब शेर सा कलेजा रख
तोड़ अपनी सोच की दीवार
समय पे अब करना है वार
दूसरे की जलाई आग में अब नहीं जलना है
आग लगा खुद की, अब सीने में
उबलने दे अब अपनी खून की ताकत
उठा कलम,लिख अपनी किस्मत
तुझे कसम है माँ के आँचल की
कसम तुझे बाप के पसीने की
फौलादी मिट्टी की उपज है तू
अब धूल सा नहीं उड़ेगा तू
आँधी है तू अपने अरमानों की
रख अब बेजोड़ कदम
इस दुनिया की छाती पे
बहुत हुआ चु चु मैं मैं
हारने से अब नहीं डरेगा तू
अब तो बस कुछ करेगा तू
Very motivational poem
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