राज़ दफ़न हैं कईं
मेरे बेलफ़्ज़ ख़ामोशी में
दर्द मेरे भूख की
दिखती नहीं अब मेरी आहों में
हवाएं चलीं, गुजर गईं
बदन कल भी नंगा था
हिम्मत आज भी बुलंद है
पिछली बारिश घर की दीवारें बहा ले गईं
लकड़ियां काटते काटते बारिश फिर आ गईं
वो फूस की छत पे फिर भी गुमान है
नहीं झेल पाएंगी वो आंधी-ए -दंश शायद
लेकिन आत्म सम्मान की ज़मीर को तो खूब सजा रखा है
कल धान बेच के
आज फिर कुछ बीज खरीदें हैं
ख्वाइशें थी इस बार
बेटे को एक नई कमीज, और माँ को एक नई साड़ी दिलाएंगे
ये कम्भख्त बारिश मेरे घर के साथ ,
मेरे सपने भी बहा ले गईं
साहब, तुम पूछते हो गरीबी क्या है
मै कहता हूँ कुछ भी तो नहीं
औकात क्या है इस गरीबी की
इसने क्या सोचा मार डालेगी ये हमे भूख से
तड़पा देगी बच्चे की खिलौनी हंसी के लिए
धरती माँ के सपूत हैं हम
पैसे से नहीं, ईमान से तौलते हैं खुद को
किसी का कुछ लेने का इरादा नहीं
जो दे सकूँ अपनी जान अपने देश, अपने मान के लिए,
सौभाग्य होगा |