उड़ चला था एक पंछी
फड़फड़ाते आसमाँ में
जले थे दीप आँखों में
उम्मीदें भी पतंग थी
ढूंढते चिराग की ज़मीन
इरादे बुलंद थे
ऊँची ज़मीन, सजे हुए सपने
ना जाने हवाओं ने क्या क्या दिखाया
उन्माद में नए रास्तों के
जीवन की डोर थामने की कशिश
उड़ रहा था एक पंछी
बिजली से कड़कती आसमाँ में
रात हुई जो चाँद के इशारे पे
सितारों की नज़रें मिली ज़मीं की धूल से
चाहत हुई पंछी को आईने की
नज़रें मिली जो खुद से
आँखें नम हुई उसकी
खो गयी थी जड़ें कहीं
उड़ते उड़ते झिलमिल आसमाँ में