साथ देती तू मेरा
मेरी खंगालती खामोशियों में
शांत तान्हाियों में
झूमती रवाणियों में
एक सोच के इशारे पे
साथ आ खड़ी हो जाती
राज़ मेरे सारे मालूम तुझे
मेरी अच्छाइयां बुराइयां
सबका एहतराम है तुझे
मेरे साथ सूरज भी देखती
चाँद की रौशनी भी सेंकती
वो पैदल से हवाओं का सफर
साथ थी तू , मेरे अंदर भी कहीं
मेरे फ़िज़ूल ख्यालों को
शब्दों में पिरो के गीत बनाया
मेरे पीर को प्यार से अपना
मुझे अपना मीत बनाया
घूमते घुमते कभी बगीचों में
फूलों की खुसबू सी महकी तू
कभी रास्तों में ही मंज़िल ढूंढी
तो कभी आस्मा में रास्ते
रास्ते और मंज़िलें और आएँगी
ज़िन्दगी नए गुल खिलाएगी
तू मचलती रह साथ मेरे
इन खुली हवाओं की सैर में
मेरी सोच को आईना दिखा
दुनिया ने बहुत कुछ सिखाया
अब तू मुझे जीना सीखा