बहुत हुआ अँधेरे का खेल,
अब एक रौशनी की खोज में निकलना है
नील गगन की आभा है बढ़ रही,
अब एक सुबह की खोज में निकलना है
सागर ने पाँव वापस खींच लिए हैं,
अब एक मोती की खोज में निकलना है
ज़मीन के कोयले बहुत देख लिए,
अब एक हीरे की खोज में निकलना है
बहुत हुआ ख़ामोशी का खेल,
अब कबीर की खोज में निकलना है
हैं मेरे अपने सपने बिछाये,
अब एक हकीकत की खोज में निकलना है
सर्वत्र ढूंढ ली जग की खुशियां ,
अब खुद की खोज में निकलना है