सोचती झलक निगाहों की
महक तेरे लिबास की
घुंगरली नज़्म मेरी
शरमाई सी, सकुचाई सी
बादलों की नब्ज़ पकड़ूँ
या हवाओं की बंदिशें सुनूँ
हया में लिपटी मुस्कान उसकी
सराबोर कुछ बूंदों से नैन मेरे
पढ़ूँ आज मैं खुद की तलब
या तुझे ज़िन्दगी मान कुछ लिखुँ
झिलमिलती ख्वाइशों की बारिश
सिर्फ भिंगु या डूब ही जाऊं
तपती ठन्डे नभ की उम्मीदें
पुरजोर हो रही बुलंद साहस
ढूंढ रही जो रूह मेरी
क्या तुझे वो कुंदन कहूं
वाह!!
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Thank you !
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🤗😊🤗
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