खुशबू बरसात की
ढक रही ज़ारों की धुप को
शाम की उलझन
समेट रही हैं गुनगुनी सुबहों को
गगन की पहुंच दूर है
ज़मीन भी आस्मां की है
मुसाफिर मैं
खुद की उमीदों का
जली हैं धड़कनें
आग की इश्क़ में
झगड़ गया खुद के अरमानों से
हारा खुद के ही पैमानों से
खबर नहीं थी मुझको
खुद के ही लिबास की
किस दोराहे पे मिला हूँ तुझसे
ऐ ज़िन्दगी
डर तुझे खोने का है
और पाने का एहसास भी