सूर्य के ललाट पे
किस्मतों की फुहार है
सिकन चाँद के माथे पे है
धरती पे तो फिर भी बहार है
गरज के शांत क्यों हो गए बदल तुम
टकराये नहीं तुम आज पिघलते अरमानों से
छोड़ दिया तुमने भी आसमानों को अकेला
डर गए क्या मुश्किलों की चंद मुलाकातों से
मुकर जाने दो हवाओं को
साँसों को कब तक धमकाओगे
सब्र का समुद्र हूँ मैं
ये वैसाख की धुप से कब तक सुखाओगे
कहानी जो लिख रहा हूँ
ख़त्म होना अभी बाकी है
जा बोल दे मद में डूबी दुनिया को
मेरा ज़िंदा होना अभी बाकी है
बहुत सुन्दर👌 मुकेश जी आप बहुत अच्छा लिखते है। इंडिया के लेखकों के लिए एक सुनहरा अवसर है। एक प्रतियोगिता चल रही है, जिसमें ढ़ेरों इनाम भी है। क्या आप इसमें भाग लेना चाहेंगे? अगर आप उत्सुक हो तो आप मुझे अपना mail id दे। तो मैं आपको सारी details भेजूंगी।
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Thank you, yeah, sure, that would be good opportunity, please let me know on live.kumarmukesh@gmail.com
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I have mailed you. Do check it!😊
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